भारत देश महान,पावन इसकी भूमि है।
करे विश्व गुणगान,बसता जन-मन में यही।
2.
कल-कल करती नाद,गंगा माता पावनी।
देती है आह्लाद,शोभित है गलहार सी।
3.
यमुना तट पर कृष्ण,राधा संग विराजते।
करते सबका त्राण,योगी उनके सम नहीं।
4.
देता ज्ञान प्रकाश,सद्गुरु सूर्य समान है।
हो पूरी हर आस,उसके चरणों में सदा।
5.
शीतल धरती आज,पावस बूँदों से हुई।
मेघों का है राज,चंचल चपला नाचती।
6.
देख घटा घनघोर,चातक बोले जोर से।
वन में नाचे मोर, रिमझिम की लगती झड़ी।
7.
जीवन का आधार, निर्मल गंगा पावनी।
इसकी पावन धार,भारत भू को सींचती।
8.
पीड़ित सकल समाज,कोरोना के रोग से।
गूँज रही आवाज,वैश्विक संकट ये बड़ा।
9.
एकमात्र उपचार,कोरोना का है यही।
यह सारा संसार, सामाजिक दूरी रखे।
10
तजे गोपियाँ-ग्वाल,कान्हा निर्मोही बने।
कभी न पूछा हाल,मथुरा में जाकर बसे।
11.
मिले सफलता आर्य,नियमित यदि अभ्यास हो।
सधते सारे कार्य,साहस धीरज से सदा।
12.
सद्गुण होते नष्ट,अहंकार की आग में।
देता सबको कष्ट,मानव दानव सम बने।
13.
भूले सब भगवान,हाला सबकी प्रिय बनी,
ज्ञानी खोए ज्ञान,इस हाला के सामने।
14.
रखिए मन में आस,मंथन मन का कीजिए।
हृदय शांति का वास, प्रश्नों के उत्तर मिलें।
15.
हृदय मिले आनंद,मीठी वाणी श्रव्य है।
रिश्ते होते मंद,कड़वे वचनों से सदा।
16.
कब जाने रघुनाथ, वैदेही की पीर को।
छोड़ा उनका साथ,राजधर्म के सामने।
17.
मुरली तेरी मौन,कान्हा आकर देख ले।
पीड़ा सुनता कौन, सूना-सूना जग लगे।
18.
नदिया जीवन धार,बसता घट में जीव है।
कण-कण में विस्तार,परम ज्योति का अंश ये।
19.
कहती मन की बात,नयनों से लगती झड़ी।
बिन बादल बरसात, हर्ष-शोक के संग में।
20.
मचता हाहाकार,श्रमिक दशा को देख के।
जितना हो उपकार,अपने मन से कीजिए।
21.
करिए उत्तम काम,संरक्षक बन दीन का।
मिलता प्रभु का धाम,उनकी सेवा से सदा।।
22.
जग में करती नाम,शिक्षित होती बेटियाँ।
करें असंभव काम,अपने पैरों पर खड़ी।।
23.
कहो सगुण साकार, निराकार
निर्गुण कहो।
सब उसके आकार,जीव उसी का अंश है।।
24.
संकट में है जान,कर्ज निरंतर बढ़ रहा।
थकता नहीं किसान, रात-दिन मेहनत करे।
25.
देता अपनी जान,जीवन-नैया डोलती।
भटके रोज किसान,न्याय नहीं मिलता उसे।
26.
तन-मन लगती आग,भीषण गर्मी जब पड़े।
व्यर्थ लगे सब राग,लू बैरी बन कर बहे ।।
27.
पक्षी होते मौन,उपवन सूने से लगें।
समझेगा अब कौन,उजड़े नीड़ों की व्यथा।
28.
यमुना तारणहार,गंगा जीवनदायिनी।
जैसे हीरक हार,भारत भू पर शोभती।।
29.
अनुपम दे संदेश,कर्मयोग के ज्ञान का।
जिससे कटते क्लेश,गीता जीवन सार है।।
30.
हो अधर्म का अंत,पार्थ उठाओ शस्त्र तुम।
गीता ज्ञान अनंत,रणभूमि में कृष्ण कहे।।
31.
पानी है अनमोल, बूंद-बूंद संचित करो।
देखो आँखें खोल,धरा कंठ भी सूखता।।
32.
व्यर्थ न हो बर्बाद,बर्षा जल संचित करो।
रखना इसको याद,जल ही जीवन है सदा।।
33.
सूखे नदिया-ताल,पनघट प्यासे हैं पड़े।
हुआ हाल-बेहाल,भीषण गर्मी में सदा।
34.
मिलता जीवनदान,पानी की इक बूँद से।
कीमत इसकी जान,संरक्षण जल का करो।
35.
बुझी कहाँ कब प्यास,सागर के जल से
कभी।
बनती जीवन आस,वर्षा की इक बूंद भी।।
36.
बने रहे अनजान,पानी-पानी सब करें।
रखें नहीं वे ध्यान,जल संरक्षण का कभी ।।
37.
व्यर्थ बहे क्यों बूँद,पानी सदा बचाइए।
बैठे आँखें मूँद,इसके बिन जीवन नहीं ।।
38.
देखो आँखें खोल,जल संकट है सामने।
जानो इसका मोल,वर्षा जल संचय करो।।
39.
हुई नहीं बरसात,सावन सूखा ही गया।
मौसम ने दी मात,हलधर चिंतित है बड़ा।।
40
होता बड़ा निराश,हलधर बैठा खेत में।
टूटी उसकी आस,पछुआ बादल ले उड़ा
41.
चमक रही पुरजोर, चंचल चपला दामिनी।
बड़ा भयंकर शोर, गरज-गरज बादल करें।।
42.
पूरी कैसे आस,प्रियतम है परदेश में।
विरहिन हुई उदास,लगती सावन की झड़ी।।
43.
करते जय जयकार,भोले के दरबार में।
भक्तों की भरमार,श्रद्धा भाव से हैं भरे।।
44.
गाती सखियाँ गीत,सावन में झूले पड़े।
छलक उठी है प्रीत,तन-मन उनका झूमता।।
45.
मुख में शिव का नाम,काँवर काँधे पर सजी।
पहुँचे शिव के धाम, संगी-साथी साथ में।।
46.
लेकर चलते लोग,काँवर शिव के नाम की।
करें ध्यान अरु योग,भक्ति-भावना से भरे।।
47.
आओ शिव के द्वार,श्रावण के इस मास में।
करें सदा उद्धार,औघड़-दानी वे सदा।।
48.
लेकर पावन नीर,काँवरिया चलता चले।
होता नहीं अधीर,काँटे चुभते पाँव में।।
49.
शिव महिमा के गीत,काँवरिया गाता चले।
मन में बसती प्रीत,आनंदित तन-मन लगे।।
50.
देखे वारिद ओर,चातक प्यासा ही रहे।
करता रहता शोर,स्वाति बूँद को ढूँढता।।
51.
भूल गए घर-द्वार,कोरोना योद्धा सभी।
शब्द कहूँ मैं चार,ऐसे वीरों के लिए।।
52.
वीर बने चट्टान,कोरोना के काल में।
रखें हथेली जान,श्वेद-रक्त टीका लगा।।
53.
यही अनोखी बात, मानवता के धर्म की।
सेवा ये दिन रात,भूखे-प्यासों की करें।।
54
सबका रखते ध्यान,अपनी सेहत भूलकर।
उसपर वारें जान,देश प्रेम सबसे बड़ा।।
55.
कोरोना के वीर,पुलिस चिकित्सक ये सभी।
बाँटे सबकी पीर,पूरे निष्ठा भाव से।।
56.
इनका हो सम्मान,जीवन रक्षक ये बने।
दाँव लगाते जान,कोरोना योद्धा सदा।।
57.
करते सभी प्रयोग,कोरोना के बीच में।
काबू में हो रोग,सबका जीवन तब बचे।।
58.
इसका रखते ध्यान, भूखों को भोजन मिले।
रखना इनका मान,कोरोना के काल में।।
59.
बनें जागरुक लोग,सामाजिक दूरी रखें।
दूर रहेगा रोग, *सबका है प्रयास यह
60.
जन सेवा की चाह,जिनके मन में है जगी।
चले धर्म की राह,संकट के इस काल में
61.
मोहक माधव श्याम,राधा है मनमोहिनी।
देखूँ आठों याम,आभा मनमंदिर बसी।।
62.
देती ये संदेश,गोपी सुनकर योग का।
बैठे वे परदेश,चंचल चितवन हम बँधे।
63.
जपूँ तुम्हारा नाम,वंदन प्रभु तेरा करूँ।
मन न रहे निष्काम,ममता माया मोह में।
64.
कान्हा तेरी प्रीत,राधा के मन में बसी।
तोड़ी सारी रीत,मथुरा में जाके बसे।।
65.
जप ले हरि का नाम,थोड़ा सा जीवन बचा।
समझ न अपना धाम,इस नश्वर संसार को।
66.
देखें गोपी ग्वाल,नटखट अठखेली करें।
यशुमति का ये लाल,तारा सबकी आँख का।
67.
शीतल वाणी आग,सुंदर मन के भाव हों।
प्रभु तेरा अनुराग, मनमंदिर में बसा रहे।।
68.
करो काम बस नेक,जाना प्रभु के धाम है।
सोचो सहित विवेक,माटी में माटी मिले।।
69.
राधा हुई उदास , कान्हा आके देख ले।
कौन रचाए रास,वन-उपवन सूने पड़े।।
70.
सुध ले लो इक बार,कान्हा गोपी-ग्वाल की।
दे दो अब उपहार,अपनी सच्ची प्रीत का।।
71.
झेले ऋण की मार,भूमिपुत्र ये देश के।
देते जीवन हार,शासन अंधा है बना ।।
72.
हरियाली चहुँ ओर,फसलें फूली खेत में।
मन में नाचे मोर,कृषक मगन हो झूमता।।
73.
भरें अन्न भंडार,धरती की सेवा करें।
देते सब कुछ वार,भूमिपुत्र सच्चे यही।।
74.
देखे नभ की ओर,बैठा हलधर खेत में।
कहाँ घटा घनघोर, सावन सूखा बीतता।।
75.
हलधर जोते खेत,स्वेद बहाए धूप में।
शासन अब तो चेत,उसकी बिगड़ी है दशा।।
76.
यमुना जी के तीर,राधा बैठी सोचती।
वे हलधर के वीर,छलिया नटखट हैं बड़े।।
77.
गाते-गाते गीत,हलधर जोते खेत को।
करता सच्ची प्रीत,अपनी फसलों से सदा।।
78.
हुई फसल बेकार,टिड्डी दल के घात से।
पड़ी दोहरी मार,टपके आँसू आँख से।।
79.
आँखों में आँसू लिए,भटके हलधर आज।
पीड़ा को समझे नहीं,पूँजी वादी राज।।
80.
शस्य-श्यामला भू सदा,देती है वरदान।
भूमिपुत्र का वह सदा,रख लेती है मान।।
81.
सुंदर बने समाज,प्रेम समर्पण त्याग से।
बुरा बनाती आज,दूषित मन की भावना।।
82.
रहना तुम खुशहाल,जीवन संकट से भरा।
वक्त भी बदले चाल,साहस हो जब साथ में।।
83.
बनती है पहचान,अच्छे कर्मों से सदा।
रखना अपना मान,जीवन के संघर्ष में।।
84.
बढ़े देश का मान,कर्म करो ऐसे सदा।
रखिए अपनी आन,जग में ऊँचा नाम हो।।
85.
झुलसे आज समाज, मतभेदों की आग में।
बिगडे़ं सारे काज,बैरी जब अपने बने।।
86.
जाता हरि के द्वार,चाहत लेकर प्रेम की।
भूल गया घर-द्वार,देखी मूरत मोहिनी।।
87.
रखना मेरा ध्यान,वरण किया प्रभु आपको।
नहीं मुझे कुछ ज्ञान, मैं मूरख अनजान हूँ।।
88.
रख मन में विश्वास,साहस धीरज साथ में।
पूरी होगी आस,संकट कितने हों बड़े।।
89
संयम चाबुक हाथ,आसन सदा पवित्र हो।
ध्यान-योग के साथ,मन तुरंग बस में करो।।
90.
उत्तम बने समाज,सदाचार जो सब करें।
सुधरे सबका आज,दुराचार का अंत हो
९१.
छाया है आलोक,अँधकार छँटने लगा।
मिटते सारे शोक, ईश्वर के आशीष से।।
९२.
गुरुवर श्री विज्ञात,दिव्यपुंज है ज्ञान के।
हरषे मन के पात,देते हमको प्रेरणा।।
९३.
करें सदा उद्धार,गुरु ही खेवनहार है।
होता बेड़ा पार,जीवन को मिलती दिशा।।
९४.
मिले मुझे बस राम,चातक मन ये चाहता।
जपना उनका नाम,मनमंदिर में वे बसें।।
९५.
भज लो हरि का नाम,जितना जीवन शेष है।
वही मोक्ष का धाम, भवसागर से तारते।।
९६.
समझो इसका मोल,जीवन है अनुपम बड़ा।
बोलो मीठे बोल,कर्म करो उत्तम सदा।।
९७.
जैसे बहता नीर,जीवन इस संसार में।
हरो पराई पीर,पर उपकार करो सदा।।
९८.
भाव भरे गंभीर,दोहा ऐसी है विधा।
कह दे मन की पीर,गागर में सागर भरे।।
९९.
सुगंध बसे समीर,सागर में नदियाँ मिले।
नश्वर छोड़ शरीर,जीव राम से जा मिले।।
१००.
करे भयंकर शोर,चंचल चपला दामिनी।
भीगे नयना कोर,विरहिन काँपी जोर से।।
अभिलाषा चौहान'सुज्ञ'