Friday, July 31, 2020

सत्ता का फेर

सत्ता के पड़ फेर में,भूले अपना काज।
जाति-धर्म के नाम पे, करते हैं वे राज।
करते हैं वे राज,बने सब भ्रष्टाचारी।
बातें लच्छेदार,सुरक्षित रहीं न नारी।
कहती अभि निज बात,वोट का फेंके पत्ता।
करते खुद से प्यार,बसे मन में बस सत्ता।

सत्ता की चौसर बिछी,जुड़े धुरंधर आय।
अपनी-अपनी जीत के,सोचें नए उपाय।
सोचें नए उपाय,फूट की फेंके गोली।
करते बंदरबांट,भरें बस अपनी झोली।
कहती अभि निज बात,काटते सबका पत्ता
भूखा मरे किसान,बसे इनके मन सत्ता।


अभिलाषा चौहान
स्वरचित मौलिक 🙏🌷😊


2 comments:

हाइकु शतक

 अभिलाषा चौहान'सुज्ञ' 1) कचरा गड्ढा~ चीथड़े अधकाया नवजात की। 2) शीत लहर~ वस्त्रविहीन वृद्ध  फुटपाथ पे । 3) करवाचौथ- विधवा के नैनों से...