कविता कवि की कल्पना,हृदय भाव उद्गार।
रस की निर्झरणी बने,तेज धार तलवार।
तेज धार तलवार,समय की बदले धारा।
सूर्य किरण से तेज, कलुष तम हरती सारा।
कहती 'अभि' निज बात,क्रांति की बहती सरिता।
लेकर तीर-कमान,हाथ में चलती कविता।
अभिलाषा चौहान'सुज्ञ'
स्वरचित मौलिक
रस की निर्झरणी बने,तेज धार तलवार।
तेज धार तलवार,समय की बदले धारा।
सूर्य किरण से तेज, कलुष तम हरती सारा।
कहती 'अभि' निज बात,क्रांति की बहती सरिता।
लेकर तीर-कमान,हाथ में चलती कविता।
अभिलाषा चौहान'सुज्ञ'
स्वरचित मौलिक
संक्षिप्त लेकिन अत्यंत प्रभावी कवित्त, ठीक नावक के तीरों की मानिंद । इस युग में सचमुच ऐसे स्वभाव वाली कविता की ही आवश्यकता है जैसी की बात इस कवित्त में की गई है ।
ReplyDeleteसहृदय आभार आदरणीय 🙏 सादर
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