हलधर बैठा खेत में,सोच रहा ये बात।
बरसे मेघा जोर से,बन जाएगी बात।
बन जाएगी बात,उगे फिर फसल अनोखी।
बिटिया का हो ब्याह,रकम जो आए चोखी।
कहती 'अभि' निज बात,करे श्रम वह जी भरकर।
सबका भरता पेट,सहे खुद पीड़ा हलधर।
अभिलाषा चौहान
स्वरचित मौलिक
सबका भरता पेट,सहे खुद पीड़ा हलधर।
अभिलाषा चौहान
स्वरचित मौलिक
उत्कृष्ट छन्द
ReplyDeleteधन्यवाद दीदी
Deleteमर्मस्पर्शी !
ReplyDelete