मानव जीवन के लिए, नैतिक मूल्य महान।
जीवन उत्तम हो सदा, दूर रहे अज्ञान।
दूर रहे अज्ञान,सत्य पथ बन अनुगामी।
दया,क्षमा अरु प्रेम,बनो करुणा के स्वामी।
कहती 'अभि' निज बात,कर्म करना है आनव।
पालन नैतिक मूल्य, बनोगे सच्चे मानव।
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गागर जल से है भरी,छलके प्रेम अपार।
जब तक जल से है भरी,तब तक ही संसार।
तब तक ही संसार,रखो हिय गागर जैसा।
बूँद-बूँद उपयोग,समय कब आए कैसा।
कहती'अभि' निज बात,जीव का तन है आगर।
जल संग मिलता जल,फूटती जब है गागर।
गागर-तन,घड़ा
जल-प्राण,जल
बूंद-जल की बूँद,पल।
जल-प्राण-परमात्मा।
आगर-घर ,निवासस्थान
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आधा जीवन खो दिया,किया कहाँ कुछ काम।
मन अस्थिर चंचल रहा,लिया न प्रभु का नाम।
लिया न प्रभु का नाम,काम में ऐसा उलझा।
जैसे जाल कुरंग,उलझ के फिर कब सुलझा।
कहती'अभि'निज बात,दिखें बाधा ही बाधा।
जपलो प्रभु का नाम ,बचा ये जीवन आधा।
काम-कर्म
काम-काम वासना
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नश्वर इस संसार में,यात्रा करता जीव।
रमता तनगृह में सदा, छोड़े तो निर्जीव।
छोड़े तो निर्जीव,पथिक नित चलता जाता।
अमर अछेद अभेद,आग में जल न पाता।
कहती'अभि'निज बात,जीव में बसता ईश्वर।
करो सदा सत्कर्म,मिटेगा तन ये नश्वर।
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मेला ये संसार है,मिलते कितने लोग।
कुछ चलते हैं साथ में,बनता ऐसा योग।
बनता ऐसा योग,लगें अपनों से ज्यादा।
संकट में दें साथ, निभाते हैं हर वादा।
कहती'अभि'निज बात,मनुज कब रहा अकेला।
जाता खाली हाथ,छोड़ दुनिया का मेला।
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अभिलाषा चौहान'सुज्ञ'
स्वरचित मौलिक
इतनी सुंदर एवं प्रभावी कुंडलियां जो सच्चे साहित्य एवं कवित्त-प्रेमी का हृदय जीत लें ! आश्चर्यचकित हूँ कि इस पर टिप्पणी करने वाला मैं प्रथम पाठक हूँ । गिरधर कविराय सरीखी ऐसी असाधारण प्रतिभा के दर्शन तो आज के युग में दुर्लभ ही हैं । असीम अभिनंदन आपका अभिलाषा जी ।
ReplyDeleteसहृदय आभार आदरणीय 🙏 सादर आपकी प्रतिक्रिया पाकर धन्य हुई।आपको मेरी रचनाएं पसंद आई इसके लिए धन्यवाद 🙏 ऐसी प्रतिक्रियाएं हमेशा उत्साह वर्धन करती है।
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