Friday, January 14, 2022

विज्ञात बेरी छंद शतक

इस छंद में चार चरण होते हैं।पहले और तीसरे चरण में आठ-आठ मात्राएं होती हैं तथा दूसरे और चौथे चरण में दस-दस मात्राएं। पहले और तीसरे चरण के तुकांत समान होने चाहिए।




१.आया सावन,हर्षित है धरती

बड़ा सुहावन,बरसा ये रिमझिम।


२.नदियाँ कल-कल,करती हैं बहती।

गगरी छल-छल,बनती ये धरती।


३.तरुवर ‌उपवन,हर्षित हो ऐसे।

खिल उठे सुमन,सबका मन जैसे।


४.झरते गाते ,सुन गीत सुहाना।

मोर नाचते,चातक चिल्लाना।


 ५.बच्चे लेकर, कागज की नैया

उसको खेकर,करते ता थैया।


६. देखी वर्षा,हलधर मनभावन।

तन-मन हर्षा,फसलें मुस्काई।


७.तपती धरती,शीतल पुरवाई

गर्मी हरती,झूमे हैं तरुवर।


८. माता मेरी,मंगल करती है।

पूजा तेरी,करती हूँ निशदिन।


९.शेरों वाली,हे दुर्गा मैया।

तू ही काली,तू ही सुख दात्री।


१०.माता हर ले,पीड़ा अब मेरी।

झोली भर ले,भक्त सदा तेरे।


११.भोले शंकर,हे डमरू वाले।

हम तो कंकर,भक्ति नहीं जाने।


१२.गंगा माता,पतित पावनी है।

जो भी आता,उसे मिले ममता।


१३.यमुना तट पर,मधुर बजी बंसी।

गोपी सुनकर,झूम उठी देखो।


१४.मीरा गाती,भजन मधुर मीठे।

हँसती जाती,मन में श्याम बसे।


१५.जीवन चलता,ज्यों नदिया धारा।

सपना पलता,सब सदा अमर हों।


१६.चंद्र चाँदनी,नभपर है शोभित

पवन रागिनी,नित्य ही सुनाए।


१७. मन ये चंचल,सुनता कब किसकी।

आतुर हरपल,उड़ता बस फिरता।

 

१८.तितली उड़ती,महकी है बगिया।

घटा उमड़ती,छाई हरियाली।


१९.चिड़ियाँ चहकीं,अब भोर सुहानी।

कलियाँ महकीं,चमके हैं मोती।


२०.मथुरा मोहन,जब जाकर बैठे

राधा का मन,कितना घबराए।


२१.माया कपटी,सब जग है जाने।

ऐसी लिपटी,ज्यूँ मकड़ी जाला।


२२.क्रोधी लोभी,बनकर क्यों फिरता।

कामी भोगी,जीवन है नश्वर।


२३.चंदन महके,लिपटे भुजंग है।

संगत चहके,रंग दिखलाए।


२४.भीषण गर्मी,तपती है धरती।

बरतो नर्मी,जीवन हो सुंदर।

२५.

पाओ शिक्षा,जीवन हो जगमग।

ऐसी भिक्षा, जिससे मन पाओ।

२६.

शिक्षा से सुख,मिलते हैं सारे।

दूर रहें दुख,खिलता है जीवन।

२७.

मंगल करनी,ममता का सागर।

कलिमल हरनी,हे मात भवानी।

२८.

मात शारदे,विद्या प्रदायिनी।

झोली भर दे,तम दूर हटे अब।

२९.

गणपति मेरे,करती हूँ वंदन।

पड़ती तेरे, चरणों में अब मैं।

३०.

जीवन सबका,ज्यों पुष्पित उपवन।

सौरभ इसका,चहुँ दिश में फैले।

३१.

चंद्र चमकता,जैसे अंबर में।

प्रेम दमकता,जीवन सुखमय हो।

३२

करणी माता,बसती देशनोक।

जो भी आता,सब इच्छा पूरी।

३३.

दशरथ नंदन, रघुकुल के नायक।

करती नंदन, प्रतिदिन प्रभु मेरे।

३४.

रघुकुल नंदन,जोड़ी अति सुन्दर।

करते वंदन,वह मन में बसते।


३५.

सिया राम मय,ये जग अति सुन्दर।

जीवन में लय,गति है सब इनसे।

३६.

विजय पर्व है,जलता अब रावण।

चूर दर्प है,सब मिट्टी मिलता।

३७.

कंचन काया,लगती है प्यारी।

डूबी माया,मिलती है माटी।

३८.

पिंजर तन है,बंदी है आत्मा।

भटका मन है,ढूँढे मंदिर में।

३९.

सत्य राह पर,जो जन चलता है।

शीश भार धर,श्रम नित है करता।

४०.

मंदिर घूमे,क्यों जोगी बनकर।

हिय तब झूमे,मिलता जब ईश्वर।

४१.

श्याम सखा सब,यमुना के तट पर।

छोड़ सके कब,प्रीत बसी है मन।

४२.

उद्धव आए,जगती है आशा।

पाती लाए,हतप्रभ हैं गोपी।

४३.

सैनिक लड़ते ,सीमा पर डटकर।

कभी न मुड़ते ,वे पीठ दिखाकर।

४४.

चौकस सीमा,सैनिक से रहती।

अरिदल धीमा,जब वह हुंकारें।

४५.

माँ की ममता,सबसे ही सुन्दर।

करो न समता,इसकी किसी से।

४६.

बिटिया रानी,खिलती फूलों सी।

मन में ठानी,सुख जीवन पाए।

४७.

माता मेरी,ममता का आँचल।

कर मत देरी,सेवा करने में।

४८.

देते छाया,पिता वृक्ष बनकर

गलती काया,कुछ भी कब कहते।

४९.

उर्वर धरती,फसलें लहराती।

पीड़ा हरती,हलधर खुश होता।

५०

बढ़ा प्रदूषण, जल-थल है दूषित।

जग के भूषण,मानव की करनी।

५१.

निर्धन निर्बल ,कहता है ये जग।

उसका पल-पल,तुम साथ निभाओ।

५२.

लक्ष्मी बाई,झाँसी की रानी।

आस जगाई,लड़ती दुश्मन से।

५३.

सरसों फूली,महकी अमराई

सजनी भूली,सब सुख दुख अपना।

५४.

हिमगिरि शोभित,बन रक्षा प्रहरी।

जन-मन मोहित,मुकुट मात का सुंदर।

५५.

सबसे प्यारा,ये देश हमारा।

कितना न्यारा,सब जग से सुंदर।

५६

गंगा निर्मल,शिव जटाजूट से

बहती कल-कल,धरती पर हरपल।

५७

सुंदर लगती,कानन मय धरती।

आशा जगती,देखी ये महिमा।

५८

लगे सुहावन,भारत की धरती।

है अति पावन,जन मन में बसती।

५९

देख तिरंगा,फहराता है जब।

लेता पंगा, फिर कौन किसी से।

६०

राधा मोहन,जोड़ी अति सुन्दर

है अति सोहन,ये बसी हृदय में।

६१.

कितनी पावन,वीरों की गाथा।

है मन भावन,सबसे ये न्यारी।

६२

कंटक चुभते ,होती है पीड़ा

हिय में उगते,फिर भाव अनोखे।

६३

दीपक जलता,मिटता अँधियारा।

प्रेम मचलता,खिलता उर अंतर।

६४

चेतक चलता,अरिदल तब भागे।

चले उछलता,हुआ कौन ऐसा।

६५

 पनघट सूने,रीती हैं गागर।

संकट दूने, बढ़ते नित जाते।

६६

कूप बावड़ी,सब सूख गए हैं।

कब लगी झड़ी,सावन भी सूना।

६७

घटते कानन,तप गई धरती।

कैसा सावन, है बात पुरानी।

६८

मीठी बातें,लगती हैं प्यारी।

करती घातें,जब चुभे हृदय में।

६९

अंबर चमके,कितने हैं तारे।

चंदा दमके,आई रात सुहानी।

७०

महकी-महकी,जीवन फुलवारी।

चिड़ियाँ चहकी,कितनी हैं सुंदर।

७१

गोरी चलती,बजती है पायल।

मन में पलती,मिलने की आशा।

७२

मन ये चंचल,कब माना किसकी।

दौड़े पल-पल,तोड़े नभ तारे।

७३

मेरे मन की,बस मैं ही जानूँ।

बनती धन सी,ये मीठी यादें।

७४

दीप जले जब,मनी दीवाली।

खुशियाँ है अब ,सबको मिलती है।

७५

ये जग माया,कह गए गुणीजन।

कुछ न लाया,तू कब ये जाना।

७६

पोथी पढ़ता,कुछ ज्ञान न पाया।

सिर पे चढ़ता,बन मूरख मानव।

७७

राम-राम भज,कर जाप निरंतर

माया को तज,मन सुंदर होता।

७८

सद्गुण सुंदर, उत्तम विचार हों।

मन के अंदर,अब सदा बसाना।

७९

दुर्गुण दुर्बल,ये पतित बनाते।

मन को निर्मल ,रखना अब प्यारे।

८०

प्रीत सुहानी,मन को है भाती।

जग ने जानी,कब महिमा इसकी।

८१

तुलसी कहते,सुन राम कथा अब।

पीड़ा सहते,बीता ये जीवन।

८२

गीता कहती,कर्म किए जाओ।

मन में रहती,क्यों फल की इच्छा।

८३

अर्जुन डरते,क्यों पाप करूँ मैं।

अपने मरते,कैसी ये छलना।

८४

कायर बनता,क्यों डरकर भागे।

सीना तनता,जब युद्ध सफल हो।

८५.

मिले सफलता,जब इस जीवन में ।

सपना पलता,उचित मार्ग चल तू।

८६.

बीती रातें, विरहिन दिन गिनती।

मीठी बातें,मन भर-भर आए।

८७

खड़े सुदामा, मन सकुचाता।

अब हे रामा,क्या बोलूँ अब मैं।

८८.

बेटी कहती,अब मुझे पढ़ाओ।

मैं हूँ सहती ,इतनी क्यों पीड़ा।

८९.

मेरा जीवन,ज्यों सागर खारा

चुभते हैं मन,कितने ये कंटक।

९०.

अपनी पीड़ा,अपने तक रखना।

ले लो बीड़ा,सब हँसी उड़ाएँ।


९१

जोडूँ मैं कर,मोहन मन भावन।

माधव लो हर ,मेरी अब पीड़ा।

९२.

कलियुग आया,अब बढ़े पाप हैं।

स्वार्थी माया,रिश्तों पर हावी।

९३.

मन के सच्चे,जो जन जीवन में।

बनते अच्छे,साथी वो प्यारे।


९४.

सागर सरिता,गिरि उपवन सारे।

धरती हरिता,कितनी सुंदर है।

९५.

नौका डूबी,जब बीच भँवर में।

देखो ऊबी,सब मन की माया।

९६

पतझड़ आया,धरती मुरझायी।

मन भरमाया,किसकी ये माया।

९७.

राधा-राधा,सब जन जप लेना।

हरती बाधा,कान्हा की प्यारी।

९८.

सावन सूना,प्रिय हैं परदेशी।

दुख तब दूना, विरहिन का बढ़ता।

९९.

माता रानी,रख ले चरणों में।

तू तो दानी,अब भर दे झोली।

१००.

तजो बुराई,सुखमय हो जीवन।

खुशियाँ आई,होता जग सुंदर।


अभिलाषा चौहान'सुज्ञ'

स्वरचित मौलिक



3 comments:

  1. कुछ छंद तो बहुत सुंदर है.

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  2. बेहतरीन सृजन

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  3. आदरणीया अभिलाषा जी !
    बहुत ही मनभावन शतकीय सृजन
    बहुत बहुत अभिनन्दन !

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हाइकु शतक

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