Tuesday, January 25, 2022

हाइकु शतक

 अभिलाषा चौहान'सुज्ञ'

1)

कचरा गड्ढा~

चीथड़े अधकाया

नवजात की।

2)

शीत लहर~

वस्त्रविहीन वृद्ध 

फुटपाथ पे ।

3)

करवाचौथ-

विधवा के नैनों से

टपकी बूँद।

4)

मैदान द्वार ~

पालीथिन चबाते

गायों का झुंड।

5)

वन नमूना~

संरक्षण केन्द्र में

परिंदा लाश।

6)

निशिथ अंत~

अनाथालय द्वार

पे नवजात।

7)

चांदनी रात~

वृद्ध जोड़ा छत पे

खींचता सेल्फी।

8)

कुहासा भोर~

बाल श्रमिक धोता

ढाबे पे कप।

9)

शिला की टापू~

बच्चा लहरों संग

खींचता सेल्फी।

10)

ईख का खेत~

झोपड़ी से उठती

राब की गंध।

11)

मृदंग थाप~

आँखों में आँसू लिये

नन्ही रक्कासा।

12)

अंधेरी रात~

झाड़ी में कराहती

अबोध बच्ची।

13)

बसंत भोर~

शशा संग बाग में

नवयौवना

14)

हल्दी की रस्म~

विधवा के हाथ में

लाल चूनर...

15)

बाग में ठूंठ~

बालक के हाथ में

नीम का पौधा

16)

शीतलहर~

भिक्षुक के तन पे

फटा अंगोछा।

17)

कश्मीर वादी~

बालक के हाथ में

श्वेत पताका..

18)

कुहासा भोर~

चौराहे पर भीख

मांगे अबोध

19)

गंगा का तट~

मधुबनी से घर

सजाती बाला।

20)

द्वार पे ईख~

आंगन में चौक पे

सिंघाड़ा-कंद।

21)

प्रसव पीड़ा

से तड़पे भिक्षुणी~

वीडियो ग्राफी।

22)

शिशिर भोर~

पोखर के जल में

परिंदा लाश..

23)

सरोवर पे

क्रीड़ारत हरिण~

शाख पे व्याघ्र

24)

कतकी पूनो~

गंगा तट पे लगा

कूड़े का ढेर।

25)


26)

पंक्ति में चींटी~

गोबर के ढेर पे

पड़ी अबोध..

27)

ज्येष्ठ मध्यान्ह~

सड़क निर्माण में

रत दिव्यांग।

28)

ज्येष्ठ मध्यान्ह~

रोड पे गड्ढा खोदे

दिव्यांग पिता।

29)

तुलसी दल~

पुत्र की अर्थी पर

गुलाब पुष्प...

30)

हिमस्खलन~

उत्तुंग श्रृंग पर

पर्वतारोही...

31)

शस्य उत्सव~

माटी के बर्तन से

पुगल गंध...

32)

ब्रह्म मुहूर्त~

जाह्नवी तट पर

राग भैरवी..

33)

डीजे की धुन~

जूठन के ढेर पे

भिक्षु बालक...

34)

शराब गंध~

अट्टहास के मध्य

बाल-चीत्कार

35)

कश्मीर वादी~

बाला ने पहन ली

सैनिक वर्दी.…

36)

कुहासा भोर~

तिल-गुड़ गंध से

महकी गली..

37)

कुहासा सांझ~

गर्म मूंगफली की

गंध चौराहे पे...

38)

शिशिर सांझ~

बाजरा रोटी संग

लसुनी गंध..

39)

उत्तुंग श्रृंग~

बर्फ मध्य तंबू से

कहवे की गंध।

40)

गोधूलि बेला

प्रसूता के कक्ष से

लोबान गंध..

41)

छत पे काग~

वृद्ध मां-बाप पोंछे

आंखों के कोर..

42)

लोहड़ी पर्व~

खील-रेबड़ी संग

भांगड़ा-गिद्दा।

43)

शरद सांझ~

गर्म मसाला गंध

बंद हांडी से..

44)

ड्योढ़ी पे काग~

नववधू द्वार की

ओट से झांके...

45)

शिशु रुदन~

दादी लिए तस्वीर

मृत पुत्र की..

46)

गुड़ की गंध~

मूंगफली सेंकती

चूल्हे पे माता...

47)

उत्तुंग श्रृंग~

पीठ पे शिशु बांधे

बागान में स्त्री..

48)

शिशिर सांझ~

केथ-मिर्च चटनी

सिलवट्टे पे

49)

ग्रीष्म मध्याह्न~

शीश घट उठाए

रेत पे बाला।

50)

मेघ गर्जना~

चावल ढेरी मध्य

सुई गाड़ी मां

51)

पूस की रात~

आग की लपटों में

फूस झोंपड़ी..

52)

कांक्रीट रोड~

बोनसाई वृक्ष का

घर में बाग।

53)

बिल्ली का शव~

ज्योतिषी पोथी खोले

आंगन मध्य..

54)

गांव में बाढ़~

नौका में गर्भिणी को

प्रसव पीड़ा...

55)

ओले की वृष्टि~

अमराई में आम

बीनते बच्चे..

56)

मध्यान्ह छुट्टी~

श्रमिक की रोटी पे

प्याज व मिर्च

57)

ओस की बूँदें 

विद्युत तार पर ~

कपोत झुंड...

58)

मिष्ठान गंध~

दादाजी के हाथ में

त्रिफलाचूर्ण।

59)

हींग की गंध~

दादी देती दादा को

त्रिफला वटी..

60)

शीत लहर~

माता के हाथ में

गोखरू बीज..

61)

बासंती राग~

पलाश पुष्प चुनें

नवयौवना..

62)

सिंह का झुंड

वन मध्य गड्ढे में

रंभाती गाय...

63)

नदी की धार~

फौजी की पीठ पे

दिव्यांग वृद्धा...

64)

भोर लालिमा~

दुकान पे लटके

नींबू और मिर्च..

65)

बैंड की धुन~

वर को महावर

लगाती भाभी..

66)

पूर्व मध्याह्न~

मां आंगन में रखी

भरभोलिए।

67)

बीहड़ वन~

बबूल के तने से

खुरची गोंद..

68)

गोधूलि बेला~

अंगारिका से उठी

मक्का की गंध।..

69)

चीड़ का वन~

पहाड़ी ढलान पे

भेड़ संग स्त्री।

70)

ढोलक थाप~

शिशु के शीश पर

बना सातियाँ।

71)

खिचड़ी गंध~

बैलों के साथ युवा

मैदान मध्य।

72)

निशीथ काल~

घूँघट की ओट से

वो मुस्कराई।

73)

कानन पथ~

छटपटाया मृग

सर्प पाश में।

74)

हवा में धूल~

साँड के पैरों तले

युवक शव।

75)

 गीत का स्वर~

विधवा के हाथ में

पति का चित्र।

76)

शिशु मुस्कान~

राई मिर्च उसारी

दादी साँझ में।

77)

  शीतलहर~

जलती झोंपड़ी से

वृद्ध की चीख।

 78)

 कानन पथ~

वृक्ष पे उकेरते

नाम युगल

79)

 पूनम चंद्र~

लहरों ने उछाली

नाविक नाव।

80)

 कानन पथ~

घास में फुदकते

शश शावक।

81)

 कानन पथ~

शव सड़ांध से

दबाई नाक।

82)

 नदी की तट~

भग्नावशेष पर

शव दुर्गंध।

83)

भोर लालिमा~

काग चोंच में दबा

चिड़िया शव।

84)

चौथे की रस्म~

श्वेत साड़ी पे रखी

‌चंदन बटी।

85)

 बैंड की धुन~

विधवा के नैनों से

टपकी बूँद।

86)

केला मंडप~

पीठ पे हल्दी थाप

लगाई भाभी।

87)

मेंहदी रस्म~

देवर ने थमाया

सोने का हार

88)

कसैलापन~

पाकशाला से आई

मुरब्बा गंध

89)

भोर लालिमा ~

पहिये में घिसटा

युवक शव

90)

पूर्व मध्याह्न~

दादा रखे धूप में

पानी बोतल।

91)

संध्या लालिमा~

बाला मुँह सिकोड़ी

रेलगाड़ी में।

92)

नदी का तट~

भग्नावशेष पर

शव दुर्गंध।

93)

धूल का धुंध~

साँड के पैरों तले

मृत युवक।

94)

खीर की गंध~

वृद्धा टटोलती

अपना पात्र।

95)

फागुन भोर~

विधवा के नैन से

टपकी बूँद।

96)

फागुन भोर~

कृषक हस्त जोड़े

मेघ समक्ष।

97)

ढोल-नगाड़े~

चाक पूजन करें

सधवा स्त्रियाँ।

98)

चैत्र पड़वा~

सड़क पर नाचे

कपोत जोड़ा।

99)

चैत्र मध्याह्न~

दुकानों के बाहर

गोले में लोग।

100)

नयन नीर~

प्लास्टिक से देखी माँ

नवजात को...

101)

प्रक्षालक बू~

दुल्हा-दुल्हन बाँधे

मुख पे पट्टी।

102)

लाकडाउन~

पुत्र की तस्वीर पे

आँसू की बूँद।

103)

नयन नीर~

रस्सी का फंदा लिए

कक्ष में बाला।

104)

श्रावण तीज~

हिना रचे हाथों पे

आँसू की बूंद।

105)

लाकडाउन~

गिलोय-अश्वगंधा

गंध चौके से।

106)

श्रावण पूनो-

बहन की थाली में

मास्क-दस्ताने।

107)

कोरोना काल~

मोबाइल पकड़े

बाल समूह।...

108)

श्रावण भोर~

पानी की बेरियों पे

लगाके ताले।

109)

जून अंतिम~

सैलानी के माथे पे

तापमापक।....

110)

श्रावण भोर~

धारा मध्य गर्भिणी

पलंग पर।...

111)

भोर लालिमा~

विदा में थमायी माँ

मास्क-दस्ताने।....

112)

सरयू तट~

पारिजात पौधे को

धरा में रोपा।...

113)

नदी का तट~

नवयुगल निहारे

तारों के बिंब।

114)

भादों पड़वा-

भुजरिया का पात्र

बाला शीश पे।

115)

कंचनजंगा~

हवाई पट्टी पर

राफेल गूँज।...



अभिलाषा चौहान

Friday, January 14, 2022

विज्ञात बेरी छंद शतक

इस छंद में चार चरण होते हैं।पहले और तीसरे चरण में आठ-आठ मात्राएं होती हैं तथा दूसरे और चौथे चरण में दस-दस मात्राएं। पहले और तीसरे चरण के तुकांत समान होने चाहिए।




१.आया सावन,हर्षित है धरती

बड़ा सुहावन,बरसा ये रिमझिम।


२.नदियाँ कल-कल,करती हैं बहती।

गगरी छल-छल,बनती ये धरती।


३.तरुवर ‌उपवन,हर्षित हो ऐसे।

खिल उठे सुमन,सबका मन जैसे।


४.झरते गाते ,सुन गीत सुहाना।

मोर नाचते,चातक चिल्लाना।


 ५.बच्चे लेकर, कागज की नैया

उसको खेकर,करते ता थैया।


६. देखी वर्षा,हलधर मनभावन।

तन-मन हर्षा,फसलें मुस्काई।


७.तपती धरती,शीतल पुरवाई

गर्मी हरती,झूमे हैं तरुवर।


८. माता मेरी,मंगल करती है।

पूजा तेरी,करती हूँ निशदिन।


९.शेरों वाली,हे दुर्गा मैया।

तू ही काली,तू ही सुख दात्री।


१०.माता हर ले,पीड़ा अब मेरी।

झोली भर ले,भक्त सदा तेरे।


११.भोले शंकर,हे डमरू वाले।

हम तो कंकर,भक्ति नहीं जाने।


१२.गंगा माता,पतित पावनी है।

जो भी आता,उसे मिले ममता।


१३.यमुना तट पर,मधुर बजी बंसी।

गोपी सुनकर,झूम उठी देखो।


१४.मीरा गाती,भजन मधुर मीठे।

हँसती जाती,मन में श्याम बसे।


१५.जीवन चलता,ज्यों नदिया धारा।

सपना पलता,सब सदा अमर हों।


१६.चंद्र चाँदनी,नभपर है शोभित

पवन रागिनी,नित्य ही सुनाए।


१७. मन ये चंचल,सुनता कब किसकी।

आतुर हरपल,उड़ता बस फिरता।

 

१८.तितली उड़ती,महकी है बगिया।

घटा उमड़ती,छाई हरियाली।


१९.चिड़ियाँ चहकीं,अब भोर सुहानी।

कलियाँ महकीं,चमके हैं मोती।


२०.मथुरा मोहन,जब जाकर बैठे

राधा का मन,कितना घबराए।


२१.माया कपटी,सब जग है जाने।

ऐसी लिपटी,ज्यूँ मकड़ी जाला।


२२.क्रोधी लोभी,बनकर क्यों फिरता।

कामी भोगी,जीवन है नश्वर।


२३.चंदन महके,लिपटे भुजंग है।

संगत चहके,रंग दिखलाए।


२४.भीषण गर्मी,तपती है धरती।

बरतो नर्मी,जीवन हो सुंदर।

२५.

पाओ शिक्षा,जीवन हो जगमग।

ऐसी भिक्षा, जिससे मन पाओ।

२६.

शिक्षा से सुख,मिलते हैं सारे।

दूर रहें दुख,खिलता है जीवन।

२७.

मंगल करनी,ममता का सागर।

कलिमल हरनी,हे मात भवानी।

२८.

मात शारदे,विद्या प्रदायिनी।

झोली भर दे,तम दूर हटे अब।

२९.

गणपति मेरे,करती हूँ वंदन।

पड़ती तेरे, चरणों में अब मैं।

३०.

जीवन सबका,ज्यों पुष्पित उपवन।

सौरभ इसका,चहुँ दिश में फैले।

३१.

चंद्र चमकता,जैसे अंबर में।

प्रेम दमकता,जीवन सुखमय हो।

३२

करणी माता,बसती देशनोक।

जो भी आता,सब इच्छा पूरी।

३३.

दशरथ नंदन, रघुकुल के नायक।

करती नंदन, प्रतिदिन प्रभु मेरे।

३४.

रघुकुल नंदन,जोड़ी अति सुन्दर।

करते वंदन,वह मन में बसते।


३५.

सिया राम मय,ये जग अति सुन्दर।

जीवन में लय,गति है सब इनसे।

३६.

विजय पर्व है,जलता अब रावण।

चूर दर्प है,सब मिट्टी मिलता।

३७.

कंचन काया,लगती है प्यारी।

डूबी माया,मिलती है माटी।

३८.

पिंजर तन है,बंदी है आत्मा।

भटका मन है,ढूँढे मंदिर में।

३९.

सत्य राह पर,जो जन चलता है।

शीश भार धर,श्रम नित है करता।

४०.

मंदिर घूमे,क्यों जोगी बनकर।

हिय तब झूमे,मिलता जब ईश्वर।

४१.

श्याम सखा सब,यमुना के तट पर।

छोड़ सके कब,प्रीत बसी है मन।

४२.

उद्धव आए,जगती है आशा।

पाती लाए,हतप्रभ हैं गोपी।

४३.

सैनिक लड़ते ,सीमा पर डटकर।

कभी न मुड़ते ,वे पीठ दिखाकर।

४४.

चौकस सीमा,सैनिक से रहती।

अरिदल धीमा,जब वह हुंकारें।

४५.

माँ की ममता,सबसे ही सुन्दर।

करो न समता,इसकी किसी से।

४६.

बिटिया रानी,खिलती फूलों सी।

मन में ठानी,सुख जीवन पाए।

४७.

माता मेरी,ममता का आँचल।

कर मत देरी,सेवा करने में।

४८.

देते छाया,पिता वृक्ष बनकर

गलती काया,कुछ भी कब कहते।

४९.

उर्वर धरती,फसलें लहराती।

पीड़ा हरती,हलधर खुश होता।

५०

बढ़ा प्रदूषण, जल-थल है दूषित।

जग के भूषण,मानव की करनी।

५१.

निर्धन निर्बल ,कहता है ये जग।

उसका पल-पल,तुम साथ निभाओ।

५२.

लक्ष्मी बाई,झाँसी की रानी।

आस जगाई,लड़ती दुश्मन से।

५३.

सरसों फूली,महकी अमराई

सजनी भूली,सब सुख दुख अपना।

५४.

हिमगिरि शोभित,बन रक्षा प्रहरी।

जन-मन मोहित,मुकुट मात का सुंदर।

५५.

सबसे प्यारा,ये देश हमारा।

कितना न्यारा,सब जग से सुंदर।

५६

गंगा निर्मल,शिव जटाजूट से

बहती कल-कल,धरती पर हरपल।

५७

सुंदर लगती,कानन मय धरती।

आशा जगती,देखी ये महिमा।

५८

लगे सुहावन,भारत की धरती।

है अति पावन,जन मन में बसती।

५९

देख तिरंगा,फहराता है जब।

लेता पंगा, फिर कौन किसी से।

६०

राधा मोहन,जोड़ी अति सुन्दर

है अति सोहन,ये बसी हृदय में।

६१.

कितनी पावन,वीरों की गाथा।

है मन भावन,सबसे ये न्यारी।

६२

कंटक चुभते ,होती है पीड़ा

हिय में उगते,फिर भाव अनोखे।

६३

दीपक जलता,मिटता अँधियारा।

प्रेम मचलता,खिलता उर अंतर।

६४

चेतक चलता,अरिदल तब भागे।

चले उछलता,हुआ कौन ऐसा।

६५

 पनघट सूने,रीती हैं गागर।

संकट दूने, बढ़ते नित जाते।

६६

कूप बावड़ी,सब सूख गए हैं।

कब लगी झड़ी,सावन भी सूना।

६७

घटते कानन,तप गई धरती।

कैसा सावन, है बात पुरानी।

६८

मीठी बातें,लगती हैं प्यारी।

करती घातें,जब चुभे हृदय में।

६९

अंबर चमके,कितने हैं तारे।

चंदा दमके,आई रात सुहानी।

७०

महकी-महकी,जीवन फुलवारी।

चिड़ियाँ चहकी,कितनी हैं सुंदर।

७१

गोरी चलती,बजती है पायल।

मन में पलती,मिलने की आशा।

७२

मन ये चंचल,कब माना किसकी।

दौड़े पल-पल,तोड़े नभ तारे।

७३

मेरे मन की,बस मैं ही जानूँ।

बनती धन सी,ये मीठी यादें।

७४

दीप जले जब,मनी दीवाली।

खुशियाँ है अब ,सबको मिलती है।

७५

ये जग माया,कह गए गुणीजन।

कुछ न लाया,तू कब ये जाना।

७६

पोथी पढ़ता,कुछ ज्ञान न पाया।

सिर पे चढ़ता,बन मूरख मानव।

७७

राम-राम भज,कर जाप निरंतर

माया को तज,मन सुंदर होता।

७८

सद्गुण सुंदर, उत्तम विचार हों।

मन के अंदर,अब सदा बसाना।

७९

दुर्गुण दुर्बल,ये पतित बनाते।

मन को निर्मल ,रखना अब प्यारे।

८०

प्रीत सुहानी,मन को है भाती।

जग ने जानी,कब महिमा इसकी।

८१

तुलसी कहते,सुन राम कथा अब।

पीड़ा सहते,बीता ये जीवन।

८२

गीता कहती,कर्म किए जाओ।

मन में रहती,क्यों फल की इच्छा।

८३

अर्जुन डरते,क्यों पाप करूँ मैं।

अपने मरते,कैसी ये छलना।

८४

कायर बनता,क्यों डरकर भागे।

सीना तनता,जब युद्ध सफल हो।

८५.

मिले सफलता,जब इस जीवन में ।

सपना पलता,उचित मार्ग चल तू।

८६.

बीती रातें, विरहिन दिन गिनती।

मीठी बातें,मन भर-भर आए।

८७

खड़े सुदामा, मन सकुचाता।

अब हे रामा,क्या बोलूँ अब मैं।

८८.

बेटी कहती,अब मुझे पढ़ाओ।

मैं हूँ सहती ,इतनी क्यों पीड़ा।

८९.

मेरा जीवन,ज्यों सागर खारा

चुभते हैं मन,कितने ये कंटक।

९०.

अपनी पीड़ा,अपने तक रखना।

ले लो बीड़ा,सब हँसी उड़ाएँ।


९१

जोडूँ मैं कर,मोहन मन भावन।

माधव लो हर ,मेरी अब पीड़ा।

९२.

कलियुग आया,अब बढ़े पाप हैं।

स्वार्थी माया,रिश्तों पर हावी।

९३.

मन के सच्चे,जो जन जीवन में।

बनते अच्छे,साथी वो प्यारे।


९४.

सागर सरिता,गिरि उपवन सारे।

धरती हरिता,कितनी सुंदर है।

९५.

नौका डूबी,जब बीच भँवर में।

देखो ऊबी,सब मन की माया।

९६

पतझड़ आया,धरती मुरझायी।

मन भरमाया,किसकी ये माया।

९७.

राधा-राधा,सब जन जप लेना।

हरती बाधा,कान्हा की प्यारी।

९८.

सावन सूना,प्रिय हैं परदेशी।

दुख तब दूना, विरहिन का बढ़ता।

९९.

माता रानी,रख ले चरणों में।

तू तो दानी,अब भर दे झोली।

१००.

तजो बुराई,सुखमय हो जीवन।

खुशियाँ आई,होता जग सुंदर।


अभिलाषा चौहान'सुज्ञ'

स्वरचित मौलिक



हाइकु शतक

 अभिलाषा चौहान'सुज्ञ' 1) कचरा गड्ढा~ चीथड़े अधकाया नवजात की। 2) शीत लहर~ वस्त्रविहीन वृद्ध  फुटपाथ पे । 3) करवाचौथ- विधवा के नैनों से...