सत्ता के पड़ फेर में,भूले अपना काज।
जाति-धर्म के नाम पे, करते हैं वे राज।
करते हैं वे राज,बने सब भ्रष्टाचारी।
बातें लच्छेदार,सुरक्षित रहीं न नारी।
कहती अभि निज बात,वोट का फेंके पत्ता।
करते खुद से प्यार,बसे मन में बस सत्ता।
सत्ता की चौसर बिछी,जुड़े धुरंधर आय।
स्वरचित मौलिक 🙏🌷😊
जाति-धर्म के नाम पे, करते हैं वे राज।
करते हैं वे राज,बने सब भ्रष्टाचारी।
बातें लच्छेदार,सुरक्षित रहीं न नारी।
कहती अभि निज बात,वोट का फेंके पत्ता।
करते खुद से प्यार,बसे मन में बस सत्ता।
सत्ता की चौसर बिछी,जुड़े धुरंधर आय।
अपनी-अपनी जीत के,सोचें नए उपाय।
सोचें नए उपाय,फूट की फेंके गोली।
करते बंदरबांट,भरें बस अपनी झोली।
कहती अभि निज बात,काटते सबका पत्ता
भूखा मरे किसान,बसे इनके मन सत्ता।
अभिलाषा चौहानकरते बंदरबांट,भरें बस अपनी झोली।
कहती अभि निज बात,काटते सबका पत्ता
भूखा मरे किसान,बसे इनके मन सत्ता।
स्वरचित मौलिक 🙏🌷😊